Wednesday 28 November 2018

सन्धि (Synthesis)


    सन्धि की परिभाषा : सन्धि का अर्थ होता है मेल | भाषा के अन्तर्गत हम दो वर्णों के मेल के परिणामस्वरूप उनमें होने वाले परिवर्तन को सन्धि कहते हैं ; जैसे - विद्या + आलय = विद्यालय | 
यहाँ पर विद्या का 'आ' वर्ण तथा आलय का भी 'आ' वर्ण मिलकर 'आ' हो गए हैं; अतः यहाँ पर सन्धि हुई है |

     सन्धि करना : दो अलग-अलग शब्दों को मिलाने को सन्धि करना कहा जाता है ; जैसे - विद्या + आलय = विद्यालय | 
     सन्धि-विच्छेद : किसी शब्द को उसके मूल शब्दों में विभक्त कर देना सन्धि-विच्छेद कहलाता है ;
जैसे - विद्यालय = विद्या + आलय | 
     सन्धि के भेद : सन्धियों को तीन भागों में बाँटा गया है -

(क) स्वर सन्धि,
(ख) व्यञ्जन सन्धि,
(ग) विसर्ग सन्धि |

(क) स्वर सन्धि : जब दो स्वर वर्ण आपस में मिलते हैं, तो उनके मेल को स्वर सन्धि कहते हैं ;
जैसे - सदा + एव = सदैव - आ + ए = ऐ |

(ख) व्यञ्जन सन्धि : जब स्वर और व्यञ्जन अथवा व्यञ्जन और व्यञ्जन वर्ण आपस में मिलते हैं तो उनके मेल को व्यञ्जन सन्धि कहते हैं ;
जैसे - सत् + जन = सज्जन - त् + ज = ज्ज |


  (ग) विसर्ग सन्धि : जब विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यञ्जन वर्ण आपस में मिलते हैं तो उनके मेल को विसर्ग सन्धि कहते हैं; जैसे - निः + आशा = निराशा - : + आ = रा | 
  इस पोस्ट में हम आपको केवल स्वर-सन्धि के विषय में विस्तार से बतायेंगे | 

     स्वर सन्धि के भेद : स्वर सन्धि के अग्रलिखित पाँच भेद होते हैं -
     (१) दीर्घ सन्धि,  (२) गुण सन्धि,  (३) वृद्धि सन्धि,  (४) यण सन्धि,  (५) अयादि सन्धि | 

     (१) दीर्घ सन्धि : जब अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ इन हस्व अथवा दीर्घ स्वरों से परे (बाद में) जब सजातीय हस्व अथवा दीर्घ स्वर आते हैं तो दोनों मिलकर दीर्घ हो जाते हैं ;
पुस्तक
+
आलय
=
पुस्तकालय
-
+
=
दया
+
आनन्द
=
दयानन्द
-
+
=
कर्म
+
अर्थ
=
कर्मार्थ
-
+
=
रवि
+
इन्द्र
=
रवीन्द्र
-
+
=
 मही
+
इन्द्र
=
महीन्द्र
-
+
=
नदी
+
ईश
=
नदीश
-
+
=
भानु
+
उदय
=
भानूदय
-
+
=
 वधू
+
उत्सव
=
वधूत्सव
-
+
=
सरयू
+
ऊर्मि
=
सरयूर्मि
-
+
=
पितृ
+
ऋण
=
पितृण 
-
+
=



     (२) गुण सन्धि : यदि अ अथवा आ से परे इ, ई आये तो उसको 'ए', उ, ऊ आये तो उसको 'ओ' तथा ऋ आये तो उसको 'अर्' हो जाता है; जैसे -

देव
+
इन्द्र
=
देवेन्द्र
-
+
=
महा
+
ईश
=
महेश
-
+
=
सुर
+
ईश
=
सुरेश
-
+
=
महा
+
उत्सव
=
महोत्सव
-
+
=
 महा
+
ऊर्मि
=
महोर्मि
-
+
=
 जल
+
ऊर्मि
=
जलोर्मि
-
+
=
ब्रह्मा
+
ऋषि
=
ब्रह्मर्षि
-
+
=
अर्
राज
+
ऋषि
=
 राजर्षि
-
+
=
अर्

     (३) वृद्धि सन्धि : यदि अ, आ से परे ए, ऐ आये तो उसका 'ऐ' हो जाता है, तथा ओ, औ आये तो उसको 'औ' हो जाता है ; जैसे -
मत
+
एक्य
=
मतैक्य
-
+
=
परम
+
ऐश्वर्य
=
परमेश्वरैय
-
+
=
सदा
+
एव
=
सदैव
-
+
=
जल
+
ओघ
=
जलौघ
-
+
=
महा
+
औषधि
=
महौषधि
-
+
=

     (४) यण सन्धि : यदि इ, ई से परे विजातीय स्वर आये तो इ, ई का 'य्' हो जाता है | उ, ऊ से परे विजातीय स्वर आता है तो उ, ऊ को 'व्' तथा ऋ से परे विजातीय स्वर आने पर ऋ को 'र्' हो जाता है ; जैसे - 
प्रति
+
एक
=
प्रत्येक
-
+
=
ये
देवी
+
आगमन
=
देव्यागमन
-
+
=
या
अभि
+
उदय
=
अभ्युदय
-
+
=
यु
सु
+
आगतम्
=
स्वगतम्
-
+
=
वा
गुरु
+
आदेश
=
गुर्वादेश
-
+
=
वा
पितृ
+
आज्ञा
=
पित्राज्ञा
-
+
=
रा
मातृ
+
आदेश
=
मात्रादेश
-
+
=
रा
मातृ
+
ईश
=
मात्रीश
-
+
=
री

     (५) अयादि सन्धि : यदि ए, ऐ, ओ, औ से परे विजातीय स्वर आता है तो क्रमशः ए को 'अय्', ऐ को 'आय', ओ को 'अव्' तथा औ को 'आव्' हो जाता है ; जैसे -

चे
+
अनम्
=
चयनम्
-
+
=
अय
ने
+
अनम्
=
नयनम्
-
+
=
अय
गै
+
अन
=
गायन
-
+
=
आय
पै
+
अक
=
पायक
-
+
=
 आय
गो
+
एषणा
=
गवेषणा
-
+
=
अवे
गो
+
अन
=
गवन
-
+
=
अव
पौ
+
अक
=
पावक
-
+
=
आव
भौ
+
उक
=
भावुक
-
+
=
 आवु
नौ
+
इक 
=
नाविक
-
+
=
आवि



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