वाच्य का अर्थ होता है - वाचन के योग्य | अर्थात वाक्य को किस प्रकार से बोला जा रहा है, इसी को वाच्य कहा जाता है | वाक्य को बोलने के क्रम को परिवर्तित करने को वाच्य-परिवर्तन कहा जाता है |
वाच्य के भेद : वाच्य निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं - (१) कर्तृवाच्य (२) कर्मवाच्य (३) भाववाच्य
(२) कर्मवाच्य : जिन वाक्यों में कर्त्ता प्रधान ना होकर कर्म प्रधान होता है, वे वाक्य कर्मवाच्य के अन्तर्गत आते हैं ; जैसे - पुस्तक राम के द्वारा पढ़ी जाती है | यहाँ पर कर्त्ता 'राम' को प्रमुखता ना देकर कर्म 'पुस्तक' को प्रमुखता दी गयी है ; अतः इस वाक्य में कर्मवाच्य है |
(३) भाववाच्य : जिन वाक्यों में कर्त्ता तथा कर्म दोनों में से कोई प्रधान नहीं होता, अपितु भाव को प्रधानता दी जाती है, वे वाक्य भाववाच्य के अन्तर्गत आते हैं ; जैसे - राम से पुस्तक नहीं पढ़ी जाती | यहाँ पर पुस्तक नहीं पढ़े जानेके भाव को प्रमुखता दी गयी है ; अतः इस वाक्य में भाववाच्य है |
वाच्य-परिवर्तन : नीचे कुछ वाक्यों को तीनों वाच्यों में दिया जा रहा है, उनको भली प्रकार समझकर वाच्य-परिवर्तन का अभ्यास कीजिये -
(क) कर्तृवाच्य : शिकारी हिंसा करता है |
कर्मवाच्य : शिकारी द्वारा हिंसा की जाती है |
भाववाच्य : शिकारी से हिंसा ही होती है |
(ख़) कर्तृवाच्य : गुरूजी ने आदेश दिया |
कर्मवाच्य : गुरूजी द्वारा आदेश दिया गया |
भाववाच्य : गुरु आदेश देते ही हैं |
(ग) कर्तृवाच्य : माताजी रोटियाँ पकाती हैं |
कर्मवाच्य : रोटियाँ माताजी द्वारा पकायी जाती हैं |
भाववाच्य : माताजी द्वारा ही रोटियाँ पकवायी जा सकती हैं |
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