Thursday 2 May 2019

विराम चिह्न (Punctuations)

प्रत्येक भाषा को बोलते समय उसमें बीच-बीच में रुकना पड़ता है, इस रुकने को प्रदर्शित करने के लिए लिखते समय कुछ चिह्नों का संकेत रूप में प्रयोग किया जाता है | भाषा में इन संकेत-चिह्नों को ही विराम चिह्न कहा जाता है | 

विराम चिह्नों का महत्त्व : विराम चिह्नों का भाषा में अत्यधिक महत्त्व है | इनके प्रयोग से जहाँ भाषा के सौंदर्य में वृद्धि होती है, वहीँ इनके प्रयोग से मन के भावों को व्यक्त करने में भी बड़ी सहायता मिलती है | अर्थ की दृष्टि से तो ये और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं; क्योंकि इनके प्रयोग से वाक्यों का अर्थ बिल्कुल ही बदल जाता है ; जैसे - 
(क) सुनो मत, आगे बढ़ो | 
(ख) सुनो, मत आगे बढ़ो | 
देखिये, ऊपर के दोनों वाक्यों में एक समान क्रम में एक ही समान शब्दों का प्रयोग किया गया है, किन्तु केवल एक अल्प विराम के प्रयोग से दोनों का अर्थ अलग-अलग हो गया है | 



विराम चिह्नों के भेद : 

(१) पूर्ण विराम : वाक्य के पूर्ण हो जाने पर जो चिह्न लगाया जाता है, उसे पूर्ण विराम कहा जाता है | इसका चिह्न ( | ) है; जैसे - ग्वाले घर लौट रहे हैं | माता दूध को मथ रही हैं | 

(२) अल्प विराम : जहाँ एक शब्द को दूसरे शब्द से अथवा एक वाक्य को दूसरे वाक्य से अलग करने के लिए थोड़ा रुका जाता है, वहाँ अल्प विराम लगाया जाता है | इसका चिह्न ( , ) है ; जैसे - हनुमान, अंगद और जामवन्त सीता की खोज के लिए निकल गए | तुम थोड़ा ठहरो, मैं अभी आया | 

(३) अर्द्ध विराम : वाक्यों में जहाँ पूर्ण विराम से काम तथा अल्प विराम से अधिक रुकना पड़ता है, वहाँ अर्द्ध विराम का प्रयोग किया जाता है | इसका चिह्न ( ; ) है ; जैसे - सूर्य निकलेगा; प्रभात होगा; कमल खिलेगा और उसमें बन्द भौंरा उड़ जाएगा | 

(४) अपूर्ण विराम : जहाँ वाक्य पूर्ण ना हुआ हो और उसको पूर्ण करने के आगे कुछ लिखना होता है, वहाँ पर अपूर्ण विराम लगाया जाता है | इसके स्थान पर निर्देशन चिह्न का प्रयोग भी किया जाता है | अपूर्ण विराम का चिह्न ( : ) है ; जैसे - वचन दो प्रकार के होते हैं : एकवचन, बहुवचन | 

(५) प्रश्न चिह्न : जिस वाक्य में कोई प्रश्न पूछा जाता है, उसके अन्त में पूर्ण विराम के स्थान पर प्रश्न चिह्न लगाया जाता है | इसका चिह्न ( ? ) है ; जैसे - तुम्हारे विद्यालय का क्या नाम है ?

(६) विस्मयादिबोधक : सम्बोधन, हर्ष, शोक, घृणा, दुःख आदि को बताने वाले शब्दों के पश्चात विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग किया जाता है | इसका चिह्न ( ! ) है; जैसे - बेचारा ! दुःख का मारा है | 

(७) योजक : समस्त पदों (जिनमें समास हो) में एक-दूसरे के पूरक दो शब्दों के मध्य यह चिह्न लगाया जाता है | इसका चिह्न ( - ) है; जैसे - माता-पिता, भाई-बहन, छोटा-बड़ा | 

(८) निर्देशन चिह्न : किसी बात का उदाहरण देने से पूर्व अथवा किसी के कथन का उल्लेख करने से पूर्व यह चिह्न लगाया जाता है ; जैसे - गुरूजी ने कहा - कल सभी बच्चे अपनी वेशभूषा में आयेंगे | 

(९) लाघव चिह्न : किसी शब्द को संक्षिप्त रूप में लिखने के लिए इस चिह्न का प्रयोग जाता है | इसका चिह्न ( ० ) है ; जैसे - भा० ज० पा०  = भारतीय जनता पार्टी, रा० सु० का० = राष्ट्रीय सुरक्षा कानून | 

(१०) उद्धरण चिह्न : किसी दूसरे के कथन को जैसे का तैसा ही अर्थात् उसके मूल रूप में प्रयोग करने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है | इसका चिह्न ( " " ) है | इस्नमेँ से एक चिह्न कथन से पूर्व तथा एक चिह्न कथन की समाप्ति पर लगाते हैं ; जैसे - रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है - "परहित सरिस धरम नहिं भाई | "
    जब किसी व्यक्ति विशेष और पुस्तक आदि का नाम लिखना होता है तो नाम से पहले तथा बाद में दो-दो चिह्न ना लगाकर एक-एक चिह्न लगाया जाता है ; जैसे - 'रामचरित्तमानस', 'गीता', 'कुरान', 'कार्लमार्क्स', 'लेनिन', 'विनोबा भावे' इत्यादि | 

(११) कोष्ठक : किसी शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है | इसका चिह्न ( ) है ;  जैसे - सेठ करोड़ीमल बहुत कृपण (कंजूस) व्यक्ति हैं | 

Sunday 28 April 2019

वाक्य विचार (Formation of Sentences)

वाक्य की परिभाषा : जो शब्द किसी अर्थ को पूर्णरूपेण स्पष्ट कर देता है, उसे वाक्य कहते हैं ; जैसे - किसान खेत जोतता है | आकाश में वायुयान उड़ता है | 

वाक्यों के भेद : रचना अथवा गठन और अर्थ की दृष्टि से वाक्यों के अलग-अलग भेद किये जाते हैं |

(अ) गठन की दृष्टि से वाक्य भेद : गठन की दृष्टि से वाक्यों के तीन भेद होते हैं -
  (१) साधारण वाक्य  (२) मिश्रित वाक्य  (३) संयुक्त वाक्य 

(१) साधारण वाक्य: जिन वाक्यों में केवल एक ही कर्त्ता और एक ही क्रिया पायी जाती है, उन्हें साधारण वाक्य कहा जाता है; जैसे - आकाश में पक्षी उड़ते हैं | बालिका मैदान में खेलती है | 
(२) मिश्रित वाक्य : जिन वाक्यों में एक मुख्य वाक्य होता है और उस पर आश्रित एक अथवा उससे अधिक उपवाक्य होते हैं, उन्हें मिश्रित वाक्य कहा जाता है; जैसे - जितना कर्म करोगे, उतना ही फल पाओगे | यदि बिजली होती तो चोर नहीं आते | 
(३) संयुक्त वाक्य : जिन वाक्यों में दो अथवा दो से अधिक साधारण अथवा मिश्रित वाक्य पाये जाते हैं, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते हैं; जैसे - आसमान साफ़ है, अतः आज वर्षा नहीं होगी | 

(ब) अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद : अर्थ की दृष्टि से वाक्यों के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं -

(१) विधानार्थक वाक्य : जिन वाक्यों से किसी कार्य के होने का ज्ञान होता है, उन्हें विधानार्थक वाक्य कहते हैं; जैसे - विभीषण ने राम की बहुत सहायता की थी | 
(२) निषेधार्थक वाक्य : जिन वाक्यों से किसी कार्य के ना होने का ज्ञान होता है, उसे निषेधार्थक वाक्य कहते हैं; जैसे - रावण ने बिना युद्ध के सीता को नहीं लौटाया | 
(३) प्रश्नार्थक वाक्य : जिन वाक्यों से किसी वस्तु, पदार्थ अथवा कार्य के विषय में पूछे जाने का ज्ञान होता है, उन्हें प्रश्नार्थक वाक्य कहते हैं ; जैसे - विश्व में ऐसा कौन सा प्राणी है, जिसे अपनी जान प्यारी नहीं है ?
(४) आज्ञार्थक वाक्य : जिन वाक्यों से आज्ञा, उपदेश देने अथवा प्रार्थना किये जाने का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञार्थक वाक्य कहते हैं ; जैसे - 
इस समय आप घर आ जाओ | (आज्ञा)
मानव की सेवा ईश्वर की सेवा है | (उपदेश)
कृपया यह सामान मेरे भाई को दे दीजिये | (प्रार्थना)
(५) इच्छार्थक वाक्य : जिन वाक्यों से किसी इच्छा का ज्ञान होता है, उन्हें इच्छार्थक वाक्य कहते हैं ; जैसे - माँ के आर्शीवाद से तुम्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति अवश्य होगी | 
(६) संकेतार्थक वाक्य : जिन वाक्यों से किसी बात का संकेत मिलता है, उन्हें संकेतार्थक वाक्य कहा जाता है | जैसे - तुम फिर वही रट लगा रहे हो | 
(७) संदेहार्थक वाक्य : जिन वाक्यों से किसी बात के विषय में संदेह उत्पन्न होता है, उन्हें संदेहार्थक वाक्य कहा जाता है ; जैसे - क्या तुम्हारी आयु ठीक लिखी है ?
(८) विस्मयार्थक वाक्य : जिन वाक्यों से विस्मय के भाव की अभिव्यक्ति होती है, उन्हें विस्मयार्थक वाक्य कहते हैं ; जैसे - वाह! तुम उत्तीर्ण हो गए | 

वाक्य के भाग : वाक्य के दो भाग होते हैं -
(क) उद्देश्य  (ख) विधेय 

(क) उद्देश्य : किसी भी वाक्य में जिस व्यक्ति, वस्तु अथवा पदार्थ के विषय में बात कही जाती है, उसे अर्थात वाक्य के कर्त्ता को उद्देश्य कहते हैं ; जैसे - 
     (अ) बच्चा चारपाई से गिर गया | 
     (ब) एक बहुत सुन्दर बच्चा मेरे पास आया | 
     (स) राम, लक्ष्मण और सीता वन को गये | 
ऊपर के वाक्यों में पहले और दूसरे वाक्यों में बच्चे के विषय में बातें कही गयीं हैं, अतः 'बच्चा' उद्देश्य है | तीसरे वाक्य में राम, लक्ष्मण और सीता के विषय में बातें कही गयीं हैं ; अतः वे तीनों ही वाक्य के उद्देश्य हैं | 
उद्देश्य का विस्तार : वाक्य में जो शब्द उद्देश्य की विशेषता बताते हैं; उन्हें उद्देश्य का विस्तार कहा जाता है ; जैसे - ऊपर के वाक्य (ब) में 'बच्चा' उद्देश्य है और 'एक बहुत सुन्दर' शब्द बच्चे की विशेषता बताने वाले शब्द हैं ; अतः 'एक बहुत सुन्दर' शब्द उद्देश्य का विस्तार कहलायेंगे |

(ख) विधेय : वाक्य में उद्देश्य के विषय में जो कुछ भी कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं ; जैसे - भारतीय सैनिकों ने आकाश से बमवर्षा करके शत्रु को पराजित कर दिया |
ऊपर के वाक्य में 'आकाश से बमवर्षा करके शत्रु को पराजित कर दिया' विधेय है |
विधेय का विस्तार : वाक्य में मुख्य बात के अतिरिक्त जो भाग होता है, उसे विधेय विस्तार कहा जाता है ; जैसे - ऊपर के वाक्य में मुख्य बात 'शत्रु को पराजित कर दिया' है | 'आकाश से बमवर्षा करके' विधेय का विस्तार है | क्रिया-विशेषण, कर्म, कर्म के विशेषण, समस्त कारकों को व्यक्त करने वाले शब्दों आदि से विधेय का विस्तार होता है |

विशेष : किसी भी वाक्य की रचना के लिए उद्देश्य और विधेय का होना अनिवार्य होता है, दोनों में से किसी के अभाव में वाक्य की रचना नहीं हो सकती | 

Sunday 2 December 2018

प्रत्यय (Suffix)

     प्रत्यय की परिभाषा : किसी शब्द के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ को परिवर्तित कर देने वाले शब्दांश प्रत्यय कहलाते हैं ; जैसे - कड़ुवा + हट = कड़ुवाहट, निकट + ता = निकटता | यहाँ पर 'हट' और 'ता' प्रत्यय हैं | 

     प्रत्ययों के भेद : प्रत्ययों के निम्नलिखित भेद होते हैं -
     (१) कृत् प्रत्यय  (२) तद्धित प्रत्यय  (३) स्त्री प्रत्यय  (४) नामधातु प्रत्यय 

     (१) कृत् प्रत्यय : किसी क्रिया अथवा धातु के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देने वाले शब्दांश कृत् प्रत्यय कहलाते हैं और उनसे निर्मित शब्दों को कृदन्त (कृत् + अन्त = कृदन्त) कहा जाता है ; जैसे - बोलना + वाला = बोलने वाला | कृत् प्रत्यय के निम्नलिखित पाँच भेद होते हैं -
     (क) कर्तृवाचक प्रत्यय,
     (ख) कर्मवाचक प्रत्यय,
     (ग) करणवाचक प्रत्यय,
     (घ) भाववाचक प्रत्यय,
     (ङ) क्रियावाचक प्रत्यय |

     (क) कर्तृवाचक प्रत्यय : क्रिया (धातु) शब्दों के अन्त में जोड़ने वाले वे शब्दांश, जो क्रिया को कर्त्ताकारक संज्ञा बना दें,
 कर्तृवाचक प्रत्यय कहलाते हैं ; जैसे - पाल + अक = पालक, खेल + आड़ी = खिलाड़ी, लूट + एरा =लुटेरा, रख + वाला = रखवाला, उड़ + ऊ = उड़ाऊ, झगड़ + आलू = झगड़ालू, गा + ऐया = गवैया | 
     (ख) कर्मवाचक प्रत्यय : धातु अथवा क्रिया के अन्त में जुड़कर उसे कर्मवाचक संज्ञा बना देने वाले शब्दांश कर्मवाचक प्रत्यय कहलाते हैं ; जैसे - बिछ + औना = बिछौना, खा + ना = खाना, ओढ़ + नी = ओढ़नी, पठ + इत = पठित |
     (ग) करणवाचक प्रत्यय : धातु अथवा क्रिया के अन्त में जुड़कर उसे करणवाचक संज्ञा बना देने वाले शब्दांश करणवाचक प्रत्यय कहलाते हैं ; जैसे - फँस + ई = फाँसी, कस + औटी = कसौटी, बँध + न = बन्धन, झाड़ + न = झाड़न, रेतना + ई = रेती, झूल + आ = झूला, फूल + आ = फूला |

     (घ) भाववाचक प्रत्यय : धातु अथवा क्रिया के अन्त में जुड़कर उसे भाववाचक संज्ञा बना देने वाले शब्दांश भाववाचक प्रत्यय कहलाते हैं ; जैसे - पढ़ + आई = पढ़ाई, तन + आव = तनाव, दिख + आवा = दिखावा, रुक + आवत = रुकावट, गुर्राना + आहट = गुर्राहट |
     (ङ) क्रियावाचक प्रत्यय : धातु के अन्त में जुड़कर क्रिया के होने के भाव को प्रकट करने वाले शब्दांश क्रियावाचक प्रत्यय कहलाते हैं | इन प्रत्ययों से कृदन्त बनाने के लिए मूल धातु के साथ 'ता' अथवा 'आ' जोड़कर उसके पश्चात 'हुआ' लगा देते हैं ; जैसे - लिख + ता हुआ = लिखता हुआ, लिख + आ हुआ = लिखा हुआ, सुन + ता हुआ = सुनता हुआ, जा + ता हुआ = जाता हुआ |

     (२) तद्धित प्रत्यय : संज्ञा और विशेषण शब्दों अन्त में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन करने वाले शब्दांश तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं और उनसे निर्मित शब्द 'तद्धितान्त' कहलाते हैं ; जैसे - सुख + इया = सुखिया, जादू + गर = जादूगर, खेत + वाला = खेतवाला, डेक + ची = डेकची |
     तद्धित प्रत्यय निम्नलिखित आठ प्रकार के होते हैं -
     (क) कर्तृवाचक तद्धित   (ख) भाववाचक तद्धित   (ग) सम्बन्धवाचक तद्धित   (घ) लघुतावाचक तद्धित
     (ङ) गणनावाचक तद्धित   (च) सादृश्यवाचक तद्धित   (छ) गुणवाचक तद्धित   (ज) स्थानवाचक तद्धित 


     (क) कर्तृवाचक तद्धित : संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के अन्त में जुड़कर जो शब्दांश किसी कार्य को करने वाले का बोध कराएं, उन्हें कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय कहा जाता है ; जैसे - लोहा + आर = लोहार, सोना + आर = सुनार, तेल + ई = तेली, दुःख + इया = दुःखिया, गेरू + आ = गेरुआ, बाजी + गर = बाजीगर, बेल + ची = बेलची, गुब्बारा + वाला = गुब्बारे वाला, पानी + हारी = पनिहारी, लकड़ी + हारा = लकड़हारा |
     (ख) भाववाचक तद्धित : जो प्रत्यय संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के साथ लगकर भाव व्यक्त करते हैं, उन्हें भाववाचक तद्धित कहा जाता है; जैसे - बजाज + आ = बजाजा, सर्राफ + आ = सर्राफा, बुरा + ई = बुराई, भला + ई = भलाई, चिपचिपा + आहट = चिपचिपाहट, आम + आवट = अमावट, काला + इमा = कालिमा, नीला + इमा = नीलिमा, ठण्ड + ई = ठण्डी, गर्म + ई = गर्मी, कटु + ता = कटुता, मधुर + ता = मधुरता, मोटा + पा = मोटापा आदि |
     (ग) सम्बन्धवाचक तद्धित : जो प्रत्यय संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के साथ मिलकर सम्बन्ध को प्रकट करते हैं, उन्हें सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय कहा जाता है; जैसे - ससुर + आल = ससुराल, नाना + आल = ननिहाल, मामा + एरा = ममेरा, फूफा + एरा = फुफेरा आदि |
     (घ) लघुतावाचक तद्धित : संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के साथ जोड़कर लघुता का ज्ञान कराने वाले प्रत्यय लघुतावाचक तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं ; जैसे - डिब्बा + इया = डिबिया, लोटा + इया = लुटिया, ढोलक + ई = ढोलकी, मेंढक + ई = मेंढकी, लंगोट + ई = लंगोटी, बछड़ा + ई = बछड़ी आदि |

     (ङ) गणनावाचक तद्धित : जो प्रत्यय संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के साथ जुड़कर संख्या का ज्ञान कराते हैं, उन्हें गणनावाचक तद्धित प्रत्यय कहा जाता है; जैसे - प्रथम + ला = पहला; दो + रा = दूसरा; तीन + रा = तीसरा, चार + था = चौथा, पाँच + वाँ = पाँचवाँ, एक + हरा = इकहरा, दो + हरा = दुहरा आदि |
     (च) सादृश्यवाचक तद्धित : जो प्रत्यय संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के साथ जुड़कर समानता का बोध कराते हैं, उन्हें सादृश्यवाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं; जैसे - मोटा + सा = मोटा सा, नीला + सा = नीला सा, सोना + हरा = सुनहरा, रूप + हला = रूपहला आदि | 

     (छ) गुणवाचक तद्धित : संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के अन्त में जुड़कर गुण का बोध कराने वाले प्रत्ययों को गुणवाचक तद्धित प्रत्यय कहा जाता है ; जैसे - भूख + आ = भूखा, प्यास + आ = प्यासा, सूख + आ = सूखा, कंजूस + ई = कंजूसी, देहात + ई = देहाती, करण + ईय = करणीय, वाञ्छित + ईय = वाञ्छनीय, रंग + ईला = रंगीला, छैल + ईला = छबीला, दया + लू = दयालू, कुल + वन्त = कुलवन्त, धन + वान् = धनवान्, दया + वान् = दयावान् आदि |
     (ज) स्थानवाचक तद्धित : जो प्रत्यय संज्ञा अथवा विशेषण शब्दों के साथ जुड़कर किसी स्थान का ज्ञान कराते हैं, उन्हें स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय कहा जाता है ; जैसे - आलमपुर + इया = आलमपुरिया, नागल + इया = नागलिया, हरियाणा + वी = हरियाणवी, गढ़वाल = ई = गढ़वाली, मेरठ + वाला = मेरठवाला, कानपुर + वाला = कानपुरवाला आदि |

     (३) स्त्री प्रत्यय : पुल्लिंग शब्दों के साथ जुड़कर जो प्रत्यय स्त्रीलिंग शब्दों की रचना करते हैं, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहा जाता है; जैसे - साजन + ई = सजनी, लड़का + ई = लड़की, प्रिय + आ = प्रिया, पाठक + इका = पाठिका, गायक + इका = गायिका, कार्यकर्त्ता + री = कार्यकर्त्रीं, नेता + री = नेत्री आदि |

     (४) नामधातु प्रत्यय : जो प्रत्यय संज्ञा अथवा सर्वनाम आदि शब्दों के साथ जुड़कर उन्हें क्रिया बना देते हैं, उन्हें नामधातु प्रत्यय कहा जाता है ; जैसे - हाथ + इयाना = हथियाना, टनटन + आना = टनटनाना, खटखट + आना = खटखटाना, अपना + आना = अपनाना आदि |

Wednesday 28 November 2018

उपसर्ग (Prefix)

     उपसर्ग की परिभाषा : शब्दों के पूर्व में जुड़कर उनका अर्थ परिवर्तन कर देने वाले शब्दांशों को उपसर्ग कहते हैं ; जैसे - आचार = व्यवहार, सत् + आचार = सदाचार (अच्छा व्यवहार); दुर् + आचार = दुराचार (बुरा व्यवहार); ला + आचार = लाचार (विवश) |
     हिन्दी में अपने उपसर्गों के अतिरिक्त संस्कृत तथा उर्दू भाषा के अनेक उपसर्गों का प्रयोग होता है | यहाँ हम हिन्दी, संस्कृत तथा उर्दू भाषा के कुछ उपसर्गों के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं. इनके आधार पर आप उपसर्ग लगाकर शब्द-रचना का अभ्यास कर सकते हैं -
हिन्दी के उपसर्ग


उपसर्ग
अर्थ
उदाहरण
कमी
असम्भव, अहित, अमर, अमृत, अवर
अध
आधा
अधपका, अधमरा, अधकचरा
अन
बिना, रहित
अनगिनत, अनचाहा, अनदेखा, अनबूझ
रहित
औघड़, औगुन, औरस, औतार
कु
बुरा
कुपात्र, कुलीन, कुलक्षण, कुचालक, कुसंग
दु
बुरा, दो
दुबला, दुकाल, दुरंगा, दुपहिया
नि
बिना, रहित
निढाल, निडर, निहित, निषेध
साथ, सहित
सपत्नी, सरस, सशंक
सु
अच्छा
सुशांत, सुशील, सुपाच्य, सुरेखा


संस्कृत के उपसर्ग

उपसर्ग
अर्थ
उदाहरण
अति
अधिक, ऊपर
अतिरंजित, अतिरेक, अतिशय, अतिरिक्त
अधि
ऊपर, श्रेष्ठ
अधिकार, अधिभार, अधिपति, अधिराज
अधः
नीचे
अधोगति, अधोमुख, अधःपतन, अधोगमन
अनु
पीछे
अनुसरण, अनुकरण, अनुरूप, अनुसार
अप
बुरा, हीन
अपकार, अपमान, अपकर्ष, अपशब्द
अभि
सामने, ओर
अभिषेक, अभिप्राय, अभिमान, अभिमुख
अव
हीन, नीचे
अवगत, अवज्ञा, अवनति, अवगुण
सीमा, तक
आजीवन, आमरण, आरेख, आसक्त
उत्
श्रेष्ठ, ऊपर
उत्पात, उत्प्रेरक, उत्कट, उत्कृष्ट
उप
निकट, गौण
उपसर्ग, उपदेश, उपमंत्री, उपवन
दुर्
बुरा, कठिन
दुर्दिन, दुर्देव, दुर्गति, दुर्गन्ध, दुरात्मा
दुस्
बुरा
दुस्साहस, दुष्कर्म, दुष्कृति, दुष्परिणाम
नि
रोकना
निरुद्ध, निषेध, निरोध, नियोजन
निर्
रहित, निषेध
निराकार, निरामिष, निर्लोभ, निर्मल
निस्
रहित, निषेध
निस्सार, निस्संतान, निस्संदेह, निस्तार
परा
पीछे, परे, उल्टा
पराजय, पराकाष्ठा, परावर्तन
परि
सब ओर, आस-पास
परिवेश, परिकल्पना, परिचय, परिपूर्ण
प्र
अधिक, श्रेष्ठ
प्रज्ज्वलित, प्रचलित, प्रबल, प्रकार
प्रति
हर एक, विपरीत
प्रतिकूल, प्रत्येक, प्रतिदिन, प्रतिरोध
पुनर्
दुबारा, फिर
पुनर्स्मरण, पुनर्गमन, पुरावृत्ति
वि
विशेष, भिन्न
विकार, विनाश, विज्ञान, विशेष
सम्
पूर्ण, साथ
समाचार, सम्पर्क, सम्बन्ध, सम्पत्ति
सु
अच्छा
सुरुचि, सुरक्षित, सुस्वाद, सुलेख


उर्दू के उपसर्ग


उपसर्ग
अर्थ
उदाहरण
कम
थोड़ा
कमसिन, कमजोर, कमअक्ल, कमउम्र
खुश
अच्छा
खुशकिस्मत, खुशबू, खुशनुमा, खुशमिजाज़
गैर
निषेध
गैरकानूनी, गैरहाज़िरी, गैरजिम्मेदार
ना
निषेध
नाखुश, नालायक, नाकाम, नाचीज़
साथ
बरोज, बदौलत, बनाम
बद
बुरा
बदजात, बदकार, बदनाम, बद्तमीज़
बा
अनुसार, सहित
बाअदब, बावर्दी, बाकायदा, बावफ़ा
बे
रहित
बेदाग, बेरंग, बेगैरत, बेकार, बेचैन
ला
रहित
लाचार, लाजवाब, लापरवाह, लाइलाज
सर
मुख्य
सरजमीं, सरताज, सरहद, सरदार
हम
साथ, समान
हमसाज, हमराज, हमदर्द, हमउम्र
हर
प्रति
हरदिन, हरपल, हरएक, हरदिल