(१) प्रयोग अथवा विकार अनुसार शब्द-भेद :
 
 
 
     शब्दों को प्रयोग के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है -
     (क) विकारी शब्द,     (ख) अविकारी शब्द
विकारी तथा अविकारी शब्दों के भी चार-चार भेद होते हैं, जिनको नीचे के चित्र में बड़ी सुगमता से समझा जा सकता है;
     (क) विकारी शब्द : प्रयोग करते समय जिन शब्दों में लिंग, वचन कारक के अनुसार कुछ परिवर्तन अथवा विकार आ जाए, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं | नीचे तीन उदाहरण देकर लिंग, वचन तथा कारक के अनुसार हुए परिवर्तनों को समझाया गया है -
ऊपर के वाक्यों में प्रत्येक शब्द विकारी है, क्योंकि इन सभी में लिंग, वचन तथा कारक के अनुसार परिवर्तन हो गया है | ये शब्द प्रकार के होते हैं |
- संज्ञा,
 - सर्वनाम,
 - विशेषण,
 - क्रिया |
 
     (ख) अविकारी शब्द : प्रयोग करते समय जिन शब्दों में कभी भी कोई परिवर्तन अथवा विकार उत्पन्न नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं | अविकारी शब्दों को अव्यय भी कहते हैं | धीरे-धीरे, किसी, वाह, क्या, कम, अधिक आदि अविकारी शब्द हैं | इन शब्दों के भी निम्नलिखित चार भेद होते हैं -
- क्रिया-विशेषण,
 - सम्बन्धबोधक,
 - समुच्चयबोधक,
 - विस्मयादिबोधक |
 
(२) उत्पत्ति के अनुसार शब्द-भेद :
     किसी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई अथवा इसके उदगम का मूलस्रोत क्या है, इस आधार पर शब्दों के चार प्रकार होते हैं - 
  (ख) तद्भव : हिन्दी भाषा में कुछ शब्द ऐसे हैं, जो आये तो संस्कृत से हैं, किन्तु उनका रूप बिगड़ गया है, इन्हीं बिगड़े रूप वाले शब्दों को तद्भव शब्द कहते हैं ; जैसे - घड़ा (घट), हाथ (हस्त), रात (रात्रि), सफ़ेद (श्वेत), आग (अग्नि) आदि |
  (ग) देशज : अपने देश में प्रचलित विभिन्न भारतीय भाषाओं के जो शब्द हिन्दी में घुल-मिल कर हिन्दी के हो गए हैं, उन्हें देशज शब्द कहा जाता है; जैसे - लड़का, पेट, खिड़की, चिमटी, गाड़ी आदि |
  (घ) विदेशी : हिन्दी में जो शब्द अंग्रेजी, उर्दू, फारसी आदि विदेशी भाषाओं से आ गए हैं, उन्हें विदेशी शब्द कहा जाता है; जैसे - डॉक्टर, दर्जा, गमला, दाम, रोज, तरह, कालीन आदि |
(३) रचना अथवा व्युत्पत्ति के अनुसार शब्द-भेद :
     किसी शब्द की रचना किस प्रकार हुई? इस आधार पर शब्दों के तीन भेद होते हैं -
(क) यौगिक,  (ख) रूढ़ि,  (ग) योगरूढ़ि 
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(क) यौगिक : दूसरे शब्दों के योग से बनने वाले ऐसे शब्द यौगिक कहलाते हैं, जिनके खण्ड करने पर प्रत्येक खण्ड का अर्थ निकलता हो; जैसे - विद्यालय = विद्या + आलय, डाकघर = डाक + घर आदि | 
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  (ख) रूढ़ि : परम्परा से चले आ रहे ऐसे शब्द, जिनके खण्ड करने पर उनके खण्डों का कोई अर्थ न निकलता हो, रूढ़ि शब्द कहलाते हैं; जैसे - 
हाथ = हा + थ,
बाल = बा + ल आदि |
यहाँ पर हाथ शब्द के हम दो खण्ड 'हा' तथा 'थ' करते हैं तो इन खण्डों का कोई अर्थ नहीं निकलता है | इसी प्रकार से बाल शब्द है; अतः हाथ और बाल दोनों ही रूढ़ि शब्द हैं |
  (ग) योगरूढ़ि : जो शब्द यौगिक शब्दों की भाँति बनते तो दो शब्दों के योग से ही हैं, किन्तु वे किसी विशेष अर्थ के लिए प्रयुक्त होते हैं, जबकि उनका शाब्दिक अर्थ कुछ और होता है | ऐसे शब्दों को योगरूढ़ि शब्द कहा जाता है; जैसे -
हल को धारण करने वाला 
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     यहाँ पर प्रत्येक शब्द दो शब्दों के योग से बना है, जिनका अलग-अलग अपना-अपना अर्थ है | दोनों शब्दों के योग से बनने वाले शब्द का भी अपना शाब्दिक अर्थ है, लेकिन उस शब्द का प्रयोग उसके शाब्दिक अर्थ के लिए नहीं होता है, वरन् एक विशेष अर्थ के लिए होता है | जलज का शाब्दिक अर्थ होता है - 'जल में उत्पन्न होने वाला', जबकि जलज का प्रयोग कभी इस अर्थ के लिए न किया जाकर विशेष अर्थ 'कमल' के लिए किया जाता है | इसी प्रकार अन्य शब्द भी हैं |



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