Saturday 17 November 2018

अविकारी शब्द (Non-Transferrable Words)

     अविकारी शब्दों की परिभाषा : लिंग, वचन तथा कारक के कारण जिन शब्दों के रूप में कोई विकार (परिवर्तन) नहीं होता है, उन्हें अविकारी शब्द अथवा अव्यय कहते हैं ; जैसे - धीरे-धीरे, कम, अधिक, कब, अब इत्यादि | 
     अविकारी शब्दों के भेद : ये शब्द चार प्रकार के होते हैं -
  1. क्रिया विशेषण,
  2. सम्बन्धबोधक,
  3. समुच्चयबोधक (योजक),
  4. विस्मयादिबोधक |

     १) क्रिया-विशेषण : जिन अविकारी शब्दों से क्रिया की विशेषता का पता चलता है, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है ; जैसे - हवा धीरे-धीरे बहती है | यहाँ पर 'धीरे-धीरे' शब्द 'बहती है' क्रिया की विशेषता को बताते हैं ; अतः 'धीरे-धीरे' क्रिया विशेषण हैं |
     क्रिया-विशेषण के भेद : क्रिया-विशेषण के निम्नलिखित चार प्रकार होते हैं -

    (क) कालवाचक : जिन शब्दों से क्रिया के सम्पन्न होने के समय का ज्ञान होता है, उन्हें कालवाचक क्रिया-विशेषण कहा जाता है ; जैसे - आज, अभी, कल, परसों, सदैव इत्यादि |


    (ख) स्थानवाचक : जिन अविकारी शब्दों से क्रिया के स्थान का ज्ञान होता है, उन्हें स्थानवाचक क्रिया-विशेषण कहा जाता है ; जैसे - यहाँ, वहाँ, ऊपर, नीचे, इधर, उधर, आगे, पीछे, दूर, पास, अन्दर, बाहर आदि |

     (ग) परिमाणवाचक : जिन अविकारी शब्दों से क्रिया के परिमाण का ज्ञान होता है, उन्हें परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण कहा जाता है ; जैसे - कम, अधिक, तनिक, ज़रा-सा, थोड़ा, बिल्कुल, मात्र इत्यादि | 
     (घ) रीतिवाचक : जिन अविकारी शब्दों से क्रिया के संपन्न होने की रीति (विधि) का ज्ञान होता है, उन्हें रीतिवाचक क्रिया-विशेषण कहा जाता है | 

     (२) सम्बन्धबोधक : जिन अविकारी शब्दों से संज्ञा अथवा सर्वनाम अथवा अन्य शब्दों के परस्पर सम्बन्धों का ज्ञान होता है ; उन्हें सम्बन्धबोधक अव्यय कहा जाता है ; जैसे -
     (क) नदी गाँव से बहुत दूर बहती है | 
     (ख) गाय के पीछे बछड़ा आ रहा है | 
     (ग) बिल के अन्दर साँप है |
     यहाँ पर पहले वाक्य में 'बहुत दूर' शब्द नदी और गाँव का सम्बन्ध, दूसरे वाक्य में 'पीछे' शब्द गाय और बछड़े का सम्बन्ध तथा तीसरे वाक्य में 'अन्दर' शब्द बिल और साँप का सम्बन्ध बताता है; अतः 'बहुत दूर', 'पीछे' तथा 'अन्दर' शब्द सम्बन्धबोधक अव्यय हैं |

     (३) समुच्चयबोधक : जो अविकारी शब्द दो शब्दों, दो पदों (वाक्यांशों) तथा दो वाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अथवा योजक अव्यय कहा जाता है; जैसे -
     (क) कृष्ण और अर्जुन युद्ध में साथ ही रहते थे | 
     (ख) बादल तो बहुत आये, किन्तु वर्षा नहीं हुई | 
     (ग) जिन शब्दों से सर्वनाम अथवा अन्य शब्दों के सम्बन्ध का ज्ञान हो | 
     ऊपर के वाक्यों में पहले वाक्य में 'और' दो शब्दों को, दूसरे वाक्य में 'किन्तु' दो वाक्यों को, तथा तीसरे वाक्य में 'अथवा' दो पदों को परस्पर मिलाते हैं; अतः 'और', 'किन्तु', तथा 'अथवा' शब्द समुच्चयबोधक अव्यय हैं | ये अव्यय भी तीन प्रकार के होते हैं -

     (क) संयोजक : जो अव्यय शब्द दो वाक्यों, पदों अथवा शब्दों को जोड़ने के लिए प्रयुक्त होते हैं, उन्हें संयोजक अव्यय कहा जाता है, जैसे -  तथा, और, एवं, जो कि, कि, इत्यादि | 
    (ख) विभाजक : जो अव्यय शब्द दो वाक्यों अथवा वाक्यांशों की विभिन्नता को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं; उन्हें विभाजक अव्यय कहा जाता है; जैसे - लेकिन, किन्तु, परन्तु, अगर, मगर, यद्यपि, तथापि, क्योंकि, अतः, अतएव इत्यादि |


    (ग) विकल्पसूचक : जो अव्यय शब्द वाक्य में किसी वस्तु के विकल्प को बतायें, उन्हें विकल्पसूचक अव्यय कहा जाता है; जैसे - या, या तो, नहीं तो, वरना, अथवा इत्यादि |

     (४) विस्मयादिबोधक : जो अव्यय शब्द सम्बोधन, हर्ष, विषाद, आश्चर्य, घृणा, दुःख, क्रोध, लज्जा, भय तथा आशीर्वाद इत्यादि को व्यक्त करते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहा जाता है; जैसे - हे, अरे, ओह, आह, छिः-छिः, अहा, हाय, वाह, काश, शाबाश, ओहो, उफ़, हा-हा इत्यादि | विस्मयादिबोधक शब्दों के अन्त में प्रायः विस्मयादिबोधक चिह्न (!) लगता है |

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