विशेषण की परिभाषा : जिन शब्दों से संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता का पता चलता है, उन्हें विशेषण कहा है |
(क) गिलास में गर्म पानी है |
(ख) यह गिलास कांच का है |
(ग) शालिनी सुन्दर लड़की है |
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विशेष्य की परिभाषा : जिन संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता विशेषण बताते हैं, उन्हें विशेष्य कहा जाता है; जैसे - ऊपर के वाक्यों में प्रथम वाक्य में गर्म शब्द पानी की विशेषता बता रहा है, दूसरे वाक्य में कांच शब्द गिलास की विशेषता बता रहा है, जबकि तीसरे वाक्य में सुन्दर शब्द शालिनी की विशेषता बता रहा है; अतः पानी, गिलास तथा शालिनी विशेष्य हैं |
विशेषण के भेद : विशेषण के निम्नलिखित भेद होते हैं -
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(१) गुणवाचक विशेषण : जिन शब्दों से संज्ञा अथवा सर्वनामों की गुण-दोष सम्बन्धी विशेषता का पता चलता है, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं ; जैसे -
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(क) आम मीठा होता है |
(ख) राजेश गन्दा लड़का है |
ऊपर के दोनों वाक्यों में मीठा शब्द आम की विशेषता बताता है, जबकि गन्दा शब्द राजेश के दोष को बताता है ; अतः 'मीठा' और 'गन्दा' शब्द गुणवाचक विशेषण हैं |
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(क) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण,
(ख) निश्चित संख्यावाचक विशेषण |
(क) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण : जिन विशेषण शब्दों से विशेष्य की किसी निश्चित संख्या का ज्ञान न हो, उन्हें अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं, जैसे - मैदान में बहुत लोग एकत्रित हैं | कुछ छात्र यहाँ आओ |
यहाँ पर प्रथम वाक्य में 'बहुत' शब्द लोगों की संख्या की ओर यह तो संकेत करता है कि उनकी संख्या एक से अधिक है, किन्तु वह संख्या कितनी है, इसका पता नहीं चलता | दूसरे वाक्य में भी 'कुछ' शब्द छात्रों की अनिश्चित संख्या को बताता है ; अतः 'बहुत' तथा 'कुछ' शब्द अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण हैं |
(ख) निश्चित संख्यावाचक विशेषण : जिन विशेषण शब्दों से विशेष्य की किसी निश्चित संख्या का ज्ञान होता है, उन्हें निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं | निश्चित संख्यावाचक विशेषण भी पाँच प्रकार के होते हैं -
(अ) गणनावाचक : जिन संख्यावाचक विशेषण शब्दों से विशेष्य की गिनती का ज्ञान हो, उन्हें गणनावाचक विशेषण कहते हैं | सभी संख्याएँ गणनावाचक विशेषण हैं ; जैसे - एक, दो, तीन, सौ, एक हजार, लाख, करोड़, अरब, शंख आदि |
(ब) क्रमवाचक : जिन संख्यावाचक विशेषण शब्दों से विशेष्य के क्रम का ज्ञान होता है, उन्हें क्रमवाचक विशेषण कहा जाता है ; जैसे - पहला, दूसरा, पाँचवाँ, पचासवाँ इत्यादि |
(स) गुणनवाचक : जिन संख्यावाचक विशेषण शब्दों से विशेष्य की गुणित संख्या का ज्ञान होता है, उन्हें गुणनवाचक विशेषण कहा जाता है ; जैसे - दो गुना, पाँच गुना, तीहरा इत्यादि |
(द) समुदायवाचक : जिन संख्यावाचक विशेषण शब्दों से विशेषण के समुदाय का ज्ञान होता है, उन्हें समुदायवाचक विशेषण कहा जाता है ; जैसे - दोनों, तीनों, पाँचों, छहों, सातों, दसों इत्यादि |
(य) पुनरावृत्तिवाचक : जब किसी विशेष्य की संख्यात्मक विशेषता बताने के लिए संख्यायों की पुनरावृत्ति की जाती है तो उन संख्यावाची शब्दों को पुनरावृत्तिवाचक विशेषण कहा जाता है ; जैसे - एक-एक, तीन-तीन, छह-छह, दस-दस आदि |
(३) परिमाणवाचक विशेषण : जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के परिमाण (नाप-तौल) का ज्ञान होता है, उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहा जाता है | ये विशेषण भी दो प्रकार के होते हैं -
(क) अनिश्चित परिमाणवाचक : जिन विशेषण शब्दों से विशेष्य की निश्चित नाप-तौल का पता न चलता हो, उन्हें अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहा जाता है ; जैसे -
(अ) माँ ने कहा - थोड़ा दूध ले आओ |
(ब) बाजार से कुछ सब्जी ले आना |
(स) कुछ कपड़ा मेरे पास रखा है |
ऊपर के तीनों वाक्यों में प्रथम वाक्य में दूध की माप की कोई निश्चित मात्रा नहीं बतायी गयी है, बल्कि 'थोड़ा' शब्द से उसकी अनिश्चित मात्रा का संकेत दिया गया है | इसी प्रकार दूसरे तथा तीसरे वाक्य में 'कुछ' शब्द से सब्जी तथा कपड़े की अनिश्चित मात्रा का संकेत दिया गया है ; अतः 'थोड़ा' तथा 'कुछ' अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण हैं |
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श्याम तुम बाजार से चार मीटर रस्सी और तीन किलो चीनी लेते आना |
ऊपर के इस वाक्य में 'चार मीटर' से रस्सी की निश्चित लम्बाई तथा 'तीन किलो' से चीनी की निश्चित तौल (भार) का पता चलता है | अतः 'चार मीटर' तथा 'तीन किलो' निश्चित परिमाणवाचक विशेषण हैं |
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(४) संकेतवाचक अथवा सार्वनामिक विशेषण : जो सर्वनाम शब्द संज्ञा से पहले आकर उसकी विशेषता प्रकट करने लगते हैं ; उनको संकेतवाचक अथवा सार्वनामिक विशेषण कहते हैं ; जैसे -
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(क) यह लड़की रेलवे स्टेशन जा रही है |
(ख) वह बस इस ओर आ रही है |
ऊपर के वाक्यों में प्रथम वाक्य में 'यह' तथा दूसरे वाक्य में 'वह' शब्द क्रमशः लड़की तथा बस की ओर संकेत करते हैं ; अतः ये संकेत वाचक विशेषण हैं | वास्तव में ये सर्वनाम शब्द हैं, किन्तु यहाँ विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं ; इसलिए ये सार्वनामिक विशेषण भी कहलाते हैं |
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विशेषणों की अवस्थाएं : विशेषणों की निम्नलिखित तीन अवस्थाएं होती हैं -
(अ) मूलावस्था : मूलावस्था में एक वस्तु की विशेषता की किसी दूसरी वस्तु की विशेषता से तुलना नहीं की जाती है ; जैसे - वेद श्रेष्ठ ग्रन्थ हैं |
यहाँ पर वेदों की श्रेष्ठता की किसी से तुलना नहीं की गयी हैं | अतः 'श्रेष्ठ' शब्द अपनी मूलावस्था में है |
(ब) उत्तरावस्था : उत्तरावस्था में एक वस्तु की विशेषता की किसी दूसरी वस्तु की विशेषता से तुलना की जाती है | इन दो वस्तुओं में से एक वस्तु को दूसरी वस्तु से श्रेष्ठ सिद्ध किया जाता है ; जैसे - कुसुम से आशा अधिक सुन्दर है |
यहाँ पर कुसुम और आशा की ससुन्दरता की तुलना की गयी है, तथा आशा को कुसुम से अधिक सुन्दर बताया गया है ; अतः 'सुन्दर' शब्द अपनी उत्तरावस्था में है |
(स) उत्तमावस्था : उत्तमावस्था में एक वस्तु की विशेषता की तुलना बहुत बहुत सारी वस्तुओं की विशेषता से की जाती है और उनमें से एक वस्तु को सभी वस्तुओं से श्रेष्ठ सिद्ध किया जाता है ; जैसे - नीतू अपनी कक्षा में सबसे चतुर है |
यहाँ पर नीतू की चतुरता की तुलना कक्षा की सभी छात्राओं से की गयी है और उसे सबसे अधिक चतुर बताया गया है ; अतः 'चतुर' शब्द अपनी उत्तमावस्था में है |
विशेषणों की रचना : कुछ शब्द तो स्वयं में ही विशेषण होते हैं और कुछ शब्दों में प्रत्यय लगाकर विशेषण बनाये जाते हैं | प्रत्ययों से किस प्रकार विशेषण बनाये जाते हैं ; इसके कुछ नियम यहाँ दिए जा रहे हैं -
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'ई' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं ; जैसे - चीन से चीनी, गुण से गुणी आदि |
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'ईय' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं ; जैसे - राष्ट्र से राष्ट्रीय, जाति से जातीय आदि |
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'ईला' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं ; जैसे - नोक से नोकीला, सुर से सुरीला आदि |
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'ईन' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं ; जैसे - प्राची से प्राचीन, कुल से कुलीन आदि |
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'इत' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं ; जैसे - अपमान से अपमानित, सम्मान से सम्मानित आदि |
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'इक' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं | जिन शब्दों ये यह प्रत्यय लगता है उन शब्दों का आरम्भिक स्वर दीर्घ अथवा गुण हो जाता है ; जैसे - संसार से सांसारिक, समाज से सामाजिक आदि |
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'आलु' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं ; जैसे - कृपा से कृपालु इत्यादि |
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'मान्' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं ; जैसे - श्री से श्रीमान् आदि |
- कुछ संज्ञा शब्दों के अन्त में 'वान्' प्रत्यय लगाकर उनसे विशेषण बनाये जाते हैं ; जैसे - प्रतिभा से प्रतिभावान् आदि |
- उत्तरावस्था के विशेषण मूलावस्था के विशेषण के अन्त में 'तर' प्रत्यय लगाकर बनाये जाते हैं | जैसे - सुन्दर से सुन्दरतर आदि |
- उत्तमावस्था के विशेषण मूलावस्था के विशेषण के अन्त में 'तम' प्रत्यय लगाकर बनाये जाते हैं ; जैसे - सुन्दर से सुन्दरतम आदि |
विभिन्न प्रत्ययों से लगकर बनने वाले विशेषणों की एक तालिका यहाँ दी जा रही है -
प्रत्यय
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संज्ञा शब्द
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विशेषण
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संज्ञा शब्द
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विशेषण
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जापान
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जापानी
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तूफानी
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इराकी
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तैराकी
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दृढ़ी
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ईय
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केन्द्रीय
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पर्वतीय
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आंचल
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आंचलीय
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राग
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ईला
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ईन
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नगर
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दया
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सुन्दरतर
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उच्चतर
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कठोर
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उत्तमावस्था
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