Monday 1 October 2018

कारक (Case)

     कारक की परिभाषा : संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के जिस रूप द्वारा उनका सम्बन्ध क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे कारक कहते हैं | कारक को बताने के लिए संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के साथ कुछ विशेष चिह्न लगे होते हैं, जिन्हें विभक्तियाँ कहा जाता है | ये चिह्न ही कारक के चिह्न भी कहलाते हैं ; जैसे - वृक्ष से फल पृथ्वी पर गिर पड़ा |
     इस वाक्य में प्रत्येक शब्द का 'गिर पड़ा' क्रिया से कोई ना कोई सम्बन्ध अवश्य है - कहाँ से गिरा ? वृक्ष से | गिरने की क्रिया किसने की ? फल ने | कहाँ गिरा ? पृथ्वी पर | अतः वृक्ष, फल तथा पृथ्वी में कोई ना कोई कारक अवश्य है | इन तीनों शब्दों के साथ 'से', 'ने' तथा 'पर' चिह्न लगे हैं, ये ही विभक्तियाँ और कारक चिह्न हैं |
     विभक्तियाँ तथा कारक आठ होते हैं | नीचे की तालिका में विभक्ति, कारक, उनकी पहचान के लिए लक्षण तथा चिह्न दिए जा रहे हैं |
विभक्ति
कारक
पहचान के लिए लक्षण
चिह्न
प्रथमा
कर्त्ता
काम को करने वाला
ने
द्वितीया
कर्म
क्रिया का फल जिस पर पड़े
को
तृतीया
करण
जिसके द्वारा काम किया जाये
से, के द्वारा
चतुर्थी
सम्प्रदान
जिसके लिए काम किया जाये
के लिए, को
पञ्चमी
अपादान
जिससे कोई वस्तु अलग होती है
से (अलग होने में)
षष्ठी
सम्बन्ध
जो सम्बन्धों को जोड़े
का, की, के, रा, री, रे
सप्तमी
अधिकरण
जो क्रिया का आधार हो
में, पर
अष्टमी
सम्बोधन
जिन शब्दों से पुकारा जाये
हे! अरे!


     यद्यपि कारक तो छह ही होते हैं, किन्तु आठ विभक्तियों के होने के कारण कारकों को भी आठ ही माना जाता है, जबकि वास्तव में 'सम्बन्ध' तथा 'सम्बोधन' कारक नहीं हैं | इन सभी कारकों को उदाहरण सहित संक्षेप में बताया जा रहा है -

     (१) कर्त्ता कारक : वाक्य में कार्य करने वाले को कर्त्ता कारक कहा जाता है | इसका चिह्न 'ने' होता है ; जैसे -
 बच्चे क्रिकेट खेलते हैं |
राधा ने माला बनायी |

    ऊपर के प्रथम वाक्य में कार्य को करने वाले 'बच्चे' हैं, क्योंकि क्रिकेट खेलने का काम वही कर रहे हैं ; जबकि दूसरे वाक्य में माला बनाने का कार्य राधा ने किया है ; अतः बच्चे तथा राधा में कर्त्ता कारक है | कई स्थानों पर कर्त्ता के चिह्न 'ने' का प्रयोग नहीं किया जाता, किन्तु फिर भी वहाँ कर्त्ता कारक होता है | ऊपर के प्रथम वाक्य में भी 'बच्चे' के साथ 'ने' का प्रयोग नहीं हुआ है, किन्तु फिर भी वहाँ कर्त्ता कारक है |

     (२) कर्म कारक : वाक्य में कर्त्ता द्वारा की जा रही क्रिया के करने का प्रभाव जिस वस्तु पर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं | कर्म कारक का चिह्न 'को' है; जैसे -
मोना भोजन पकाती है |
बन्दर आम खता है |
संजय ने कुत्ते को मारा |

      ऊपर के प्रथम वाक्य में पकाने का प्रभाव 'भोजन' पर, दूसरे वाक्य में खाने का प्रभाव 'आम' पर तथा तीसरे वाक्य में मारने का प्रभाव 'कुत्ते' पर पड़ रहा है ; अतः 'भोजन', 'आम' तथा कुत्ते शब्दों में कर्म कारक है | कई स्थानों पर कर्म कारक के चिह्न 'को' का प्रयोग नहीं होता है, किन्तु फिर भी वहाँ कर्म कारक होता है | ऊपर के प्रथम तथा द्वितीय वाक्य में 'भोजन' तथा 'आम' के साथ 'को' का प्रयोग नहीं हुआ है |

     (३) करण कारक : जिस वस्तु की सहायता से क्रिया सम्पन्न की जाती है, उसमें करण कारक होता है | करण कारक के चिह्न 'से', 'के द्वारा' हैं ; जैसे -
लवकुश पानी से नहाता है |

राम ने बाली को बाण से मारा |

     ऊपर के पहले वाक्य में नहाने की क्रिया 'पानी से' सम्पन्न हो रही है, जबकि दूसरे वाक्य में मारने की क्रिया 'बाण से' सम्पन्न हो रही है ; अतः 'पानी' और 'बाण' में करण कारक है | 


     (४) सम्प्रदान कारक : जिसके लिए क्रिया की जाती है, उसमें सम्प्रदान कारक होता है | सम्प्रदान के चिह्न 'के लिए' तथा 'को' हैं ; जैसे -
राधा गीता को पुस्तक देती है |
खाने के लिए घर चलें |

     ऊपर के पहले वाक्य में 'गीता को' पुस्तक दी जा रही है, अर्थात 'गीता के लिए' पुस्तक देने की क्रिया की जा रही है, जबकि दूसरे वाक्य में 'खाने के लिए' घर चलने को कहा जा रहा है ; अतः 'गीता को' तथा 'खाने के लिए' में सम्प्रदान कारक है |

     सम्प्रदान कारक तथा कर्म कारक में अंतर : सम्प्रदान कारक तथा कर्म कारक दोनों के ही चिह्न 'को' हैं, किन्तु इसका अर्थ ये नहीं हैं कि दोनों कारक एक ही हैं | कर्म कारक में तो क्रिया का प्रभाव 'कर्म' पर पड़ता है, जबकि सम्प्रदान कारक में किसी के लिए कार्य किया जाता है | सम्प्रदान कारक के चिह्न 'को' का अर्थ भी 'के लिए' ही होता है, जैसा कि आप सम्प्रदान कारक के उदाहरण में प्रथम वाक्य में देखते हैं |

     (५) अपादान कारक : जब किसी वस्तु से कोई वस्तु अलग होती है तो जिससे अलग हुआ जाता है, उसमें अपादान कारक होता है | अपादान कारक का चिह्न 'से' है ; जैसे -


बिल्ली छत से कूद गयी |



डाकिया शहर से आया |


     ऊपर के पहले वाक्य में बिल्ली 'छत से' अलग हो रही है, जबकि दूसरे वाक्य में डाकिया 'शहर से' अलग हुआ है ; अतः 'छत से' तथा 'शहर से' में अपादान कारक है |

     करण कारक तथा अपादान कारक में अंतर : करण कारक तथा अपादान कारक दोनों का ही चिह्न 'से' है, किन्तु दोनों में इसका अर्थ अलग-अलग होता है | जिस साधन से (के द्वारा) क्रिया की जाती है, उस साधन में करण कारक होता है; अर्थात् वहाँ 'से' का अर्थ 'के द्वारा' होता है, जबकि अपादान कारक में 'से' अलग होने के अर्थ में आता है ; जैसे -
     करण कारक : मोहित साइकिल से (के द्वारा) विद्यालय गया |
     अपादान कारक : मोहित साइकिल से गिरा |
     पहले वाक्य में मोहित साइकिल के द्वारा विद्यालय गया है; अतः 'से', 'के द्धारा' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, जबकि दूसरे वाक्य में मोहित साइकिल से गिरने के कारण साइकिल से अलग हो गया है; अतः यहाँ 'से' का अर्थ अलग होने से है |

     (६) सम्बन्ध कारक : शब्दों के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु से सम्बन्ध ज्ञात होता है, तो सम्बन्ध बताने वाले शब्द में सम्बन्ध कारक होता है | इस कारक के चिह्न का, की, के, रा, री, रे हैं ; जैसे -
यह मेरा घर है |
राम की माताजी बीमार हैं |

     ऊपर के पहले वाक्य में 'मेरा' शब्द 'घर' से सम्बन्ध को बता रहा है कि घर किसका है, जबकि दूसरे वाक्य में 'राम की' शब्द माताजी से सम्बन्ध को बता रहा है कि माताजी किसकी हैं; अतः 'मेरा' तथा 'राम की' में सम्बन्ध कारक है | जब वाक्य को कहने वाला अपने सम्बन्ध को किसी से बताता है, अथवा सुनने वाले के सम्बन्ध को किसी से बताता है तो वहाँ 'मैं' तथा 'तू' शब्दों के साथ लिंग के अनुसार रा, री, रे सम्बन्ध कारक के चिह्न लगाकर उनके रूप बना लिए जाते हैं ; जैसे - मेरा, मेरी, मेरे, हमारा, हमारी, हमारे, तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे, आपका, आपकी, आपके | जब वाक्य में किसी तीसरे व्यक्ति का सम्बन्ध किसी वस्तु से बताया जाता है, तो अन्य पुरुष के साथ का, की, के चिह्न लगाकर उसके रूप बना लिए जाते हैं ; जैसे - राम का, राम की, राम के, उसका, उसकी, उसके आदि | 

     (७) अधिकरण कारक : क्रिया के आधार में अधिकरण कारक होता है | जिस वस्तु के ऊपर अथवा भीतर क्रिया हो रही होती है, उसे क्रिया का आधार कहा जाता है और उस आधार में अधिकरण कारक होता है | अधिकरण कारक के चिह्न 'में', 'पर' हैं ; जैसे -
तोता पिंजड़े में बैठा है |
शालिनी पलंग पर सोती है |

     ऊपर के वाक्यों में प्रथम वाक्य में तोते के बैठने की क्रिया 'पिंजड़े में' सम्पन्न हो रही है, जबकि दूसरे वाक्य में शालिनी के सोने की क्रिया 'पलंग पर' सम्पन्न हो रही है ; अतः 'पिंजड़े में' तथा 'पलंग पर' में अधिकरण कारक है | 

     (८) सम्बोधन कारक : जिन शब्दों के द्वारा किसी को पुकारा जाए, उनमें सम्बोधन कारक होता है | सम्बोधन कारक के चिह्न हे! अरे! आदि हैं | इन चिह्नों का वाक्यों में प्रयोग किया ही जाए, यह आवश्यक नहीं है | इन चिह्नों का प्रयोग प्रायः नहीं किया जाता है ; जैसे -
अरे कंचन! वर्षा में मत खेलो |


छात्रों! आप सबको मिलकर रहना चाहिए |



     ऊपर के वाक्यों में प्रथम वाक्य में 'अरे कंचन' शब्दों से कंचन को पुकारा जा रहा है, जबकि 'छात्रों!' शब्द से छात्रों को सम्बोधित किया गया है ; अतः अरे कंचन! तथा छात्रों! में सम्बोधन कारक है | सम्बोधन के पश्चात विस्मयादिबोधक चिह्न (!) लगाया जाता है |

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