मात्राएँ : स्वर जब व्यञ्जनों के साथ मिलते हैं तो उनके रूप में परिवर्तन हो जाता है | स्वरों के इसी रूप परिवर्तन को मात्रा कहा जाता है | मात्राएँ एक विशेष चिह्न के रूप में प्रयुक्त की जाती हैं | 'अ' को छोड़कर प्रत्येक मात्रा का अपना एक अलग चिह्न है, जो व्यञ्जन के साथ विभन्न प्रकार से लगता है | 'अ' सभी व्यञ्जनों में मिला होता है; अतः उसकी कोई मात्रा नहीं होती है | जब व्यञ्जन में 'अ' स्वर नहीं मिला होता है तो व्यञ्जन के नीचे हलन्त लगाते हैं ; जैसे - क्, प्, छ्, ल्, व्, न् आदि |
इन हलन्त व्यञ्जनों में स्वर 'अ' के मिल जाने पर ही वे पूर्ण व्यञ्जन बनते हैं ; जैसे -
स्वर
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ा
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ग्
+ आ
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ग्
+ उ
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ग्
+ ऊ
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ग्
+ ऋ
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ग्
+ ए
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ग्
+ ऐ
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ग्
+ ओ
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गो
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ग्
+ औ
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र् + ऊ = रू - रूप, रूम, रूपक, रूठना, रूढ़ि, रूस आदि |
'र्' जब अन्य व्यञ्जनों के साथ संयुक्त होता है तो वह व्यञ्जनों के ऊपर मात्रा की भाँति लगता है; अतः कुछ लोग अज्ञानवश इसे भी मात्रा ही मानते हैं, जबकि यह मात्रा नहीं होती | देखिये, 'र्' किस प्रकार से व्यञ्जनों के ऊपर लगता है -
र् + म = र्म - धर्म, कर्म, शर्म, टर्न, अर्थ, गर्त आदि |
जब कुछ हलन्त व्यञ्जनों के साथ 'र' संयुक्त होता है तो वह 'उ' की मात्रा की भाँति व्यञ्जन के नीचे लगता है, कुछ लोग इसे भी मात्रा ही मान बैठते हैं, जबकि यह भी मात्रा नहीं होती है | देखिये, हलन्त व्यञ्जनों के साथ 'र' किस प्रकार संयुक्त होता है; जैसे -
ट् + र = ट्र - ट्रक, ट्रांसपोर्ट, ट्रैक्टर आदि |
ड् + र = ड्र - ड्रम, ड्रामा, ड्रिल आदि |
हलन्त वर्णों के साथ 'इ' की मात्रा : किसी भी हलन्त व्यञ्जन के साथ कभी भी किसी भी स्वर की मात्रा नहीं लगती है, किन्तु वह अपने बाद आने वाले व्यञ्जन पर लगने वाली 'इ' की मात्रा के स्थान को परिवर्तित अवश्य कर देता है | जब हलन्त के बाद वाले व्यञ्जन पर 'इ' की मात्रा लगानी होती है तो वह मात्रा उसी व्यञ्जन के ऊपर ना लगाकर हलन्त व्यञ्जन से पहले लगाते हैं | कुछ लोग यह समझ लेते हैं कि वह मात्रा हलन्त व्यञ्जन पर लगी है, जबकि ऐसा नहीं होता | वह मात्रा तो हलन्त व्यञ्जन के बाद वाले व्यञ्जन की होती है और उसका उच्चारण भी उसी के साथ होता है | हलन्त अक्षर को हम बोलचाल की भाषा में 'आधा अक्षर' भी कहते हैं | नीचे दिए गए शब्दों से आप हलन्त व्यञ्जनों के साथ 'इ' की मात्रा के प्रयोग को भी भली प्रकार से समझ सकते हैं -
गड्डियों
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वर्णों और मात्राओं के उच्चारण : वर्णों तथा मात्राओं के उच्चारण में हमें विशेष सावधानी रखनी चाहिए | थोड़ी सी असावधानी से ही शब्दों का अर्थ बदल जाता है | इस बात को नीचे दिए गए चित्रों और उनके साथ के वाक्यों से भली प्रकार समझा जा सकता है -
देखिये, यहाँ पर प्रथम वाक्य में लौटा शब्द वापिस आने के अर्थ को बता रहा है, जबकि दूसरे वाक्य में लोटा शब्द एक बर्तन के नाम को बताता है | दोनों शब्दों में केवल ओ और औ की मात्रा का अन्तर है | इसी प्रकार से तीसरे वाक्य में स्त्री नारी के लिए प्रयुक्त हुआ है, जबकि चौथे वाक्य में इस्तरी शब्द एक विद्युत-चालित यंत्र के लिए प्रयुक्त हुआ है | इन दोनों के उच्चारण में थोड़ा सा ही अंतर होता है | यदि इन अन्तरों को ध्यान में न रखा जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है, अतः हमें शुद्ध उच्चारण पर बहुत अधिक ध्यान देना चाहिए | हमारा उच्चारण तभी शुद्ध हो सकता है, जब हमें उनके उच्चारण स्थान तथा उच्चारण करने की विधि ज्ञात हो | उच्चारण के समय हमें वर्णों से सम्बन्धित निम्नलिखित बातों को भी ध्यान में अवश्य रखता चाहिए -
अल्पप्राण : जिन वर्णों के उच्चारण के समय मुख से थोड़ी-सी वायु निकलती है, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं | थोड़ी-सी वायु निकलने का यह अर्थ नहीं है कि हम इन वर्णों को झटके के साथ बोलें | क, ग, ङ, च, ज, ज्ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, य, र, ल, व ये उन्नीस व्यञ्जन तथा सभी स्वर वर्ण अल्पप्राण होते हैं |
महाप्राण : जिन वर्णों के उच्चारण के समय अपेक्षाकृत अधिक वायु निकलती है, उन्हें महाप्राण कहा जाता है | इनको बोलते समय थोड़ा सा झटका लगता है | ख, घ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह ये सभी वर्ण महाप्राण हैं |
घोष : जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से निकलने वाली वायु में कम्पन होने के कारण गूँज होती है, उन्हें घोष वर्ण कहा जाता है | इनकी संख्या तीस है | ग, घ, ङ, ज, झ, ज्ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ घोष वर्ण हैं |
अघोष : जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से निकलने वाली वायु में कम्पन नहीं होता और गूँज भी नहीं होती, उन्हें अघोष वर्ण कहा जाता है | इनकी संख्या तेरह है | क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स अघोष वर्ण हैं |
विवृत्त : जिन वर्णों के उच्चारण के समय मुख पूर्ण रूप से खुला रहता है, उन्हें विवृत्त वर्ण कहा जाता है | सभी स्वर विवृत्त वर्ण हैं |
स्पृष्ट : जिन वर्णों के उच्चारण के समय जीभ मुख के किन्हीं भागों को स्पर्श करती है, उन्हें स्पृष्ट अथवा स्पर्श वर्ण कहा जाता है | 'क' से होकर 'म' तक सभी वर्ण पूर्ण स्पृष्ट वर्ण हैं |
ईषत्स्पृष्ट : जिन वर्णों के उच्चारण के समय जीभ स्पृष्ट वर्णों की अपेक्षा मुख के भागों का काम स्पर्श करती है, उन्हें ईषत्स्पृष्ट कहा जाता है | य, र, ल, व ईषत्स्पृष्ट वर्ण हैं |
ईषद्विवृत्त : जिन वर्णों के उच्चारण के समय मुख थोड़ा-सा खुलता है, उन्हें ईषद्विवृत्त कहा जाता है | श, ष, स, ह ईषद्विवृत्त वर्ण हैं |
अब हम आपको कुछ उन वर्णों के उच्चारण का अन्तर बता रहे हैं, जिनका उच्चारण आपस में बहुत-कुछ मिलता-जुलता है, जिसके कारण लोग प्रायः उनके उच्चारण में गलती करते हैं |
पञ्चम वर्णों का उच्चारण : पाँचों वर्गों के अन्तिम वर्ण ङ, ज्ञ, ण, न, म पञ्चम वर्ण कहलाते हैं| इन वर्णों में से पहले दो वर्णों का प्रयोग सदैव ही बिना स्वर के ङ, ज्ञ, के रूप में होता है | ये दोनों वर्ण कभी भी शब्द के आरम्भ और अन्त में नहीं आते हैं | 'ण' का प्रयोग शब्द के आरम्भ में नहीं होता, जबकि अन्त में इसका प्रयोग बहुतायत से देखने को मिलता है | 'न' तथा 'म' का प्रयोग शब्दों के आरम्भ मध्य तथा अन्त तीनों ही स्थानों पर होता है | इनके उच्चारण की विधि इस प्रकार है -
- 'ङ' के उच्चारण में वायु को कण्ठ से रोककर नाक से निकाला जाता है |
- 'ञ' के उच्चारण में जीभ को ऊपर वाले दाँतों से कुछ ऊपर लगाकर वायु को नाक से निकाला जाता है |
- 'ण' के उच्चारण में जीभ को मूर्धा से लगाकर वायु को नाक से निकाला जाता है |
- 'न' के उच्चारण में जीभ को दाँतों से लगाकर वायु को नाक से निकाला जाता है |
- 'म' के उच्चारण में ओठों को बंद कर के वायु को नाक से निकाला जाता है |
इन पाँचों वर्णों से बनने वाले कुछ शब्दों को हम सारणी के रूप में दे रहे हैं, उनका उच्चारण उपर्युक्त विधियों से करने का अभ्यास कीजिये -
ङ वर्ण
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ञ वर्ण
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घण्टा, घंटा
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डण्ठल, डंठल
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डङ्का, डंका
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अञ्जू, अंजू
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मञ्जू, मंजू
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ऊपर की सारणी से यह स्पष्ट हो गया है कि लिखते समय हम इन हलन्त पञ्चम वर्णों के स्थान पर अनुस्वार (-) भी लगा सकते हैं | यदि हमें लिखते समय इन हलन्त पञ्चम वर्णों का प्रयोग ही करना हो तो यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि हमें उसी वर्ग के पञ्चम वर्ण का प्रयोग करना चाहिए, जैसे - 'घण्टा' शब्द को लिखते समय हम ट वर्ग के पञ्चम वर्ण 'ण' का ही प्रयोग करेंगे; क्योंकि इस शब्द में 'ण' के पश्चात 'ट' वर्ण आ रहा है, जो कि ट वर्ण का प्रथम वर्ण है |
अनुस्वार (बिन्दु) व अनुनासिक (चन्द्रबिन्दु) का उच्चारण : अनुस्वार के उच्चारण में वायु केवल नाक से निकलती है, जबकि अनुनासिक में नाक के साथ-साथ मुख से भी वायु निकलती है | दोनों का अंतर आपको इन शब्दों से ज्ञात हो जाएगा -
अनुस्वार - संकेत, तंग, रंग, संचय, संशोधन, पंकज आदि |
अनुनासिक - मुँह, चाँद, आँख, महिलाएँ, माँ, पहुँचा, आँचल आदि |
ड - ड़ तथा ढ - ढ़ का उच्चारण : ड - ड़ तथा ढ - ढ़ वर्णों को कुछ लोग एक ही वर्ण समझते हैं, और वे इसीलिए इनका प्रयोग भी गलत ढंग से करते हैं | 'ड' तथा 'ढ' के उच्चारण में जीभ मूर्धा छूकर वायु के मार्ग को बिल्कुल बंद कर देती है, जबकि 'ड़' और 'ढ़' के उच्चारण में जीभ का अगला सिरा तो मूर्धा को छूता है, किन्तु उसके दोनों ओर से वायु निकलती रहती है | इन चारों वर्णों के अंतर को निम्न तालिका के शब्दों से समझा जा सकता है -
'ब' और 'व' का उच्चारण : 'ब' के उच्चारण के समय ओठ बन्द होकर खुलते हैं, जबकि 'व' के उच्चारण में ओठ बन्द नहीं होते, वरन् थोड़ा-सा आगे को निकलकर गोल होते हैं | 'ब' तथा 'व' से बनने वाले कुछ शब्द इस प्रकार हैं -
'ब' युक्त शब्द - बकरी, बम्बा, बम्बई, बब्बन, बहुत, बनावट, बदन आदि |
'व' युक्त शब्द - विवेक, विवश, वंशज, विवाह, विवृत्त, व्यवहार, वदन आदि |
श, ष तथा स का उच्चारण : इन तीनों वर्णों के उच्चारण में प्रायः अधिकांश लोग गलती करते हैं | वे तीनों वर्णों का उच्चारण एक जैसा ही करते हैं | अब हम आपको इनके शुद्ध उच्चारण को बता रहे हैं | 'श' का उच्चारण दाँतों से कुछ ऊपर तालु से जीभ लगाकर किया जाता है, जबकि 'ष' का उच्चारण जीभ को मूर्धा से लगाकर किया जाता है | 'स' का उच्चारण दाँतों के साथ जीभ को लगाकर किया जाता है | इन तीनों वर्णों से बनने वाले कुछ शब्दों को हम नीचे सारणी में दे रहे हैं, इनके उच्चारण का अभ्यास करके इनके अन्तर को समझिये |
'ष' युक्त शब्द
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'स' युक्त शब्द
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शालीन
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शेषनाग
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सवार
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शङ्कर
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षट्कोण
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साहस
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शाश्वत
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षष्ठ
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सन्यास
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श्रमिक
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रक्षा
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संस्कार
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श्रृंगार
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विशिष्ट
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समाधि
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शशक
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दुष्ट
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सुरक्षा
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विसर्ग (:) तथा ह का उच्चारण : विसर्ग सदैव ही किसी स्वर के पश्चात् आता है; अतः इसका उच्चारण स्वर के पश्चात हलन्त 'ह्' की भाँति किया जाता है, जबकि 'ह' के उच्चारण में स्वर बाद में आता है | इन दोनों का ही उच्चारण कण्ठ से किया जाता है | दोनों के कुछ शब्दों को यहाँ दिया जा रहा है, इनके उच्चारण का अभ्यास कीजिये |
विसर्गयुक्त शब्द - प्रायः, प्रातःकाल, संभवतः, शनैः, स्मृतिः, निःश्वास आदि |
'ह' युक्त शब्द - हलधर, हवा, आहार, बिहार, सही, हिम्मत, हिरन, अपहरण आदि |
Nice content...
ReplyDeletemany thanks :)
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